इंदिरा गांधी और आपातकाल: वो माफी जो कभी पूरी नहीं हुई
25 जून 1975 की वो रात भारतीय इतिहास में काली स्याही से लिख दी गई। मैं अक्सर सोचता हूँ—क्या सच में कोई माफी उन 21 महीनों की त्रासदी को मिटा सकती है? जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया, तो नागरिक अधिकारों का जो मजाक बना, वो आज भी याद आता है। और हैरानी की बात ये कि बाद में खुद इंदिरा ने इसे “दुर्भाग्यपूर्ण” कहा। पर सवाल वहीँ का वहीँ है—क्या शब्दों से घाव भरते हैं?
1. आपातकाल: जब सबकुछ ठप्प हो गया
अनुच्छेद 352 का इस्तेमाल करके इंदिरा सरकार ने जो किया, वो किसी डरावनी फिल्म जैसा था। रातोंरात:
- अखबारों पर सेंसरशिप—जैसे किसी ने आवाज़ पर ताला जड़ दिया हो
- विरोधी नेताओं की जेलों में भराई—आडवाणी से लेकर जॉर्ज फर्नांडिस तक
- न्यायपालिका की कैंची काट दी गई
मेरे दादाजी बताते थे कि उस वक्त ट्रेन में भी डर के साथ सफर करते थे। किसी से बात करने से पहले दस बार सोचना पड़ता था।
2. इंदिरा ने ऐसा क्यों किया? असली वजह
देखिए, सच तो ये है कि 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा का चुनाव रद्द कर दिया था। और JP का आंदोलन तो जैसे सुलगती आग थी। कांग्रेस के एक बुजुर्ग नेता ने मुझे बताया था: “बेटा, ये लोकतंत्र बचाने का नाटक था। असल में तो खुद को बचाने की मजबूरी थी।” सच कहूँ तो डर ही था जिसने इंदिरा को ये कदम उठाने पर मजबूर किया।
3. आपातकाल के वो 21 महीने: क्या हुआ था असल में?
3.1. आम आदमी का दर्द
1 लाख से ज्यादा लोग जेलों में। इंडियन एक्सप्रेस ने तो खाली पन्ने छापकर कह दिया—”हमारे पास छापने को कुछ नहीं बचा”। क्या आप कल्पना कर सकते हैं?
3.2. संजय गांधी का नसबंदी अभियान
ये शायद सबसे बदनाम हिस्सा था। दिल्ली के तुर्कमान गेट में तो जैसे इंसानियत शर्मसार हो गई। बुलडोजर चले, और लोगों की जिंदगियाँ बर्बाद हो गईं।
3.3. जमीनी प्रतिरोध
RSS के लोग भूमिगत होकर पर्चे बाँटते। 1977 में जनता पार्टी बनी—और फिर क्या था, इतिहास ने करवट ली।
4. इंदिरा की माफी: कितनी सच्ची थी?
1980 के दशक में BBC को दिए इंटरव्यू में इंदिरा ने कहा था—”मैं तो तत्कालीन परिस्थितियों में फैसला ले रही थी… शायद कुछ गलत हो गया।” पर यकीन मानिए, राजनीति में माफी और चाय की प्याली में झाग जैसी होती है—दिखती ज़्यादा है, होती कम है।
5. आज भी क्यों मायने रखता है आपातकाल?
1977 के बाद 44वाँ संशोधन हुआ—ताकि कोई दोबारा आपातकाल का खिलवाड़ न कर सके। पर मुझे लगता है कि ये घटना हमारी राजनीतिक DNA में घुल गई है। आज जब मीडिया पर दबाव बनता है या कोर्ट की आलोचना होती है, तो 1975 की याद ताजा हो जाती है।
6. सबक: क्या हमने सीखा है?
एक दिलचस्प बात—हर साल 25 जून को हम #EmergencyHorrors ट्रेंड कराते हैं। पर क्या हम वाकई सतर्क हैं? जैसे मेरे कॉलेज के प्रोफेसर कहते थे—”लोकतंत्र सिर्फ वोट डालने से नहीं, सवाल पूछने से बचता है।”
अंतिम बात
आपातकाल कोई पुरानी किताब का अध्याय नहीं है। ये एक चेतावनी है—जैसे प्रणब मुखर्जी ने कहा था, “लोकतंत्र गार्डन की तरह है, इसे रोज पानी देना पड़ता है।” और हम भूल रहे हैं ये पानी देना।
कुछ सवाल-जवाब
सवाल: आपातकाल कब तक चला?
जवाब: 21 महीने—25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक।
सवाल: क्या इंदिरा ने सच में माफी मांगी?
जवाब: हाँ, पर बहुत देर से—और वो भी “दुर्भाग्यपूर्ण” जैसे शब्दों में।
सवाल: सबसे बड़ा विरोध किसने किया?
जवाब: JP आंदोलन ने, और फिर जनता पार्टी ने इतिहास बदल दिया।
एक नोट: ये लेख लिखते वक्त मुझे अपने दादाजी की बातें याद आ रही थीं—जो उस दौर से गुजरे थे। शायद आपके परिवार में भी कोई ऐसी कहानियाँ हों। कमेंट में जरूर बताएँ।
Source: News18 Hindi – Nation