शुभांशु शुक्ला का ISS मिशन: असली समय में देखिए ये ऐतिहासिक सफर
मानो या न मानो, पर इतिहास हमारी आँखों के सामने बन रहा है। शुभांशु शुक्ला—एक नाम जिसे अब भारत कभी नहीं भूल पाएगा। सच कहूँ तो, जब उनका स्पेसएक्स ड्रैगन यान छूटा, मेरी आँखें नम हो गईं। ये कोई सामान्य खबर नहीं है, दोस्तों। पहली बार कोई भारतीय निजी मिशन पर ISS तक पहुँचा है। और हाँ, ये सिर्फ एक उड़ान नहीं, बल्कि नए युग की शुरुआत है।
शुभांशु कौन हैं? असल कहानी
देखिए, मीडिया वाली बातें छोड़िए। शुभांशु की कहानी वो है जो हर मध्यमवर्गीय भारतीय बच्चे का सपना होता है। लखनऊ के एक साधारण स्कूल से निकलकर सितारों तक का सफर। पर यहाँ एक दिलचस्प बात—उनके पिता सरकारी स्कूल में टीचर थे। सोचिए, जिस घर में पैसे की तंगी रही हो, वहाँ से कोई बच्चा अंतरिक्ष तक पहुँच जाए!
अब तकनीकी बात करें तो—ये पहला मौका है जब कोई भारतीय सरकारी नहीं बल्कि प्राइवेट फंडिंग से अंतरिक्ष गया। स्पेसएक्स के उस ड्रैगन कैप्सूल की तस्वीर देखी आपने? वो सफेद-नीला यान… जिसमें बैठकर हमारा लड़का सितारों से बातें करने गया। गर्व होता है न?
Axiom-4: सिर्फ एक मिशन नहीं
लोग पूछते हैं—इसमें खास क्या है? बात समझिए: ये कोई पर्यटन नहीं है। ISS पर जाकर ये टीम वो प्रयोग करेगी जो धरती पर संभव नहीं। मसलन, माइक्रोग्रैविटी में कैंसर रिसर्च। पर मजे की बात ये कि शुभांशु अकेले नहीं हैं—उनके साथ तीन और विशेषज्ञ हैं। एक तरह से ये अंतरिक्ष की लैब में चल रही अंतरराष्ट्रीय पार्टी है!
और हाँ, ड्रैगन यान के बारे में—वो फ्लोरिडा से उड़ा था न? असल में उसे बनाने वाले इंजीनियर्स में दो भारतीय भी थे। किसने सोचा था कि चेन्नई के इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़े लड़के एक दिन अंतरिक्ष यान बनाएँगे!
लाइव कैसे देखें? आसान तरीका
अब सबसे जरूरी बात—आप इसका लाइव कैसे देख सकते हैं। मैं खुद NASA TV पर देख रहा हूँ, पर आप Axiom Space की वेबसाइट पर भी जा सकते हैं। एक टिप—ट्विटर पर #ShubhanshuISS फॉलो करें। वहाँ रियल-टाइम अपडेट्स मिलते हैं। कल रात जब वो ISS से पहली सेल्फी भेजी थी—वो तो ट्रेंड कर गई!
सच बताऊँ? मेरे फोन की बैटरी इसी में खत्म हो रही है। हर घंटे नई तस्वीरें, नए वीडियो… ऐसा लगता है जैसे हम सब उनके साथ अंतरिक्ष में घूम रहे हैं।
हमारे लिए क्यों मायने रखता है ये मिशन?
एक दिलचस्प किस्सा सुनाता हूँ। मेरे घर के पास के चायवाले ने कल पूछा—”भईया, ये सब देखकर मेरा बेटा अब साइंस पढ़ना चाहता है।” यही तो है इस मिशन की असली जीत। नौजवानों को सपने दिखाना। और हाँ, इससे बड़ी बात—अब प्राइवेट कंपनियाँ भी अंतरिक्ष में जा सकती हैं। सोचिए, अगले दस साल में शायद टाटा या अंबानी भी अपना स्पेस स्टेशन बना लें!
परदेस में बैठे एनआरआई दोस्तों को ये बात समझ आएगी—जब विदेशी मीडिया भारतीय सफलता की बात करता है, तब छाती चौड़ी हो जाती है। आज बीबीसी से लेकर सीएनएन तक सब शुभांशु की बात कर रहे हैं।
आखिरी बात (पर सबसे जरूरी)
ये कोई “और फिर वो अंतरिक्ष में चले गए” वाली कहानी नहीं है। ये उस लड़के की कहानी है जिसने स्कूल बस का किराया बचाने के लिए पैदल चला था। जिसने IIT की तैयारी करते वक्त दो वक्त की रोटी के लिए ट्यूशन पढ़ाई थी। और आज… वोी लड़का अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से धरती को निहार रहा है।
तो क्या करें? बस इतना—इस पल का हिस्सा बनिए। लाइव स्ट्रीम चालू रखिए। बच्चों को दिखाइए। और हाँ… अगली बार जब कोई कहे कि “भारत कुछ नहीं कर सकता”, तो शुभांशु शुक्ला का नाम ले लीजिएगा।
लोग क्या पूछ रहे हैं?
शुभांशु ने कौन सा कोर्स किया था?
IIT मुंबई से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग—पर असल मेहनत तो उसके बाद शुरू हुई। NASA की ट्रेनिंग तो बस चेरी ऑन द केक थी।
क्या हम भी ऐसा मिशन बुक कर सकते हैं?
हाँ! पर तैयार रहिए 50-60 करोड़ रुपये खर्च के लिए। Axiom Space की वेबसाइट पर फॉर्म भरा जा सकता है।
ISS पर कितने दिन रहेंगे?
कुल 16 दिन—जिसमें से 14 दिन सिर्फ रिसर्च में जाएँगे। सोने का वक्त भी नहीं मिलेगा शायद!
सबसे मुश्किल पल कौन सा था?
लॉन्च से पहले का वो 1 मिनट… जब सब कुछ रुक सा गया था। फिर इंजन की आवाज ने सबकी साँसें वापस लौटा दीं।
Source: News18 Hindi – Nation