ईरान-इजरायल युद्ध में चीन फंसा, पुतिन की बढ़ी ताकत – जानें पूरा खेल!

ईरान-इज़राइल टकराव: चीन फंसा बीच में, रूस मौके की ताक में

ये मध्य पूर्व है भाई – यहाँ तनाव तो रहता ही है। लेकिन ईरान और इज़राइल के बीच हाल की झड़पों ने सिर्फ़ इस इलाके को ही नहीं, पूरी दुनिया की राजनीति को हिला कर रख दिया है। अमेरिका ने जब ईरान पर बम बरसाए, चीन का रिएक्शन देखने लायक था – खुला विरोध, पर साथ ही एक अजीब सी हिचक भी। और इसी बीच, पुतिन? वो तो जैसे मछली पानी में हो।

चीन की फंसी बिल्ली वाली कहानी

ईरान से दोस्ती, पश्चिम से दुश्मनी नहीं

चीन ने अमेरिकी बमबारी को लेकर जोरदार आलोचना की है – ये तो साफ दिखता है। पर असल में? उनकी मुश्किल ये है कि ईरान से उनके 25 साल के मोटे-मोटे डील हैं (तेल, गैस, बंदरगाह – सब कुछ), लेकिन पश्चिमी बाजार भी तो चाहिए। एक तरफ़ तो वो ईरान का साथ दे रहे हैं, दूसरी तरफ़ अमेरिका और यूरोप से भी नाता नहीं तोड़ना चाहते। बस, यहीं फंसे हैं।

तेल का खेल

चीन की असली चिंता? उनकी पेट्रोल पंप वाली समस्या। देखिए न, चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल खरीदार है, और उसका ज्यादातर तेल मध्य पूर्व से आता है। अगर यहाँ युद्ध छिड़ गया तो? तेल के दाम आसमान छूएंगे, और चीन की फैक्ट्रियाँ ठप पड़ जाएंगी। सोचिए, आपके घर में CNG गैस न आए तो क्या होता है – वही हाल चीन का होगा।

रूस का ‘अच्छे दिन’

पुतिन का मास्टरस्ट्रोक

जब सब लड़ रहे हैं, पुतिन जी बस मौका देख रहे हैं। ईरान के साथ उनके रक्षा समझौते पक्के हो चुके हैं, और अब वो खुद को ‘शांतिदूत’ बता रहे हैं। चालाकी ये है कि अमेरिका जितना ईरान पर दबाव बनाएगा, ईरान उतना ही रूस की तरफ भागेगा। और पुतिन? वो तो बस हाथ रगड़ रहे हैं।

चीन-रूस: दोस्त या धोखेबाज?

ये दोनों देश खुद को ‘अमेरिका-विरोधी गठबंधन’ बताते हैं। पर असल में? रूस अब मध्य पूर्व में अपनी पैठ बना रहा है, और चीन को ये पसंद नहीं। एक तरह से, पुतिन चीन की प्लेट से ही खाना खा रहे हैं। मजे की बात ये कि चीन कुछ बोल भी नहीं सकता – क्योंकि उसे भी रूस के साथ दोस्ती निभानी है।

भारत के लिए क्या मायने?

पुराने दोस्त, नए दुश्मन?

भारत और रूस की दोस्ती तो दशकों पुरानी है – हमारे 70% से ज्यादा फौजी सामान रूस से ही आते हैं। लेकिन अब जब रूस चीन के करीब जा रहा है, दिल्ली में चिंता की लकीरें गहरी हो रही हैं। हालाँकि, मोदी और पुतिन के बीच की ‘चाय-दोस्ती’ अभी भी काम कर रही है। पर कब तक? ये सवाल सबके मन में है।

तेल और तकलीफ

भारत के लिए सबसे बड़ा झटका तेल के दामों में आ सकता है। हमारा 80% तेल आयात तो मध्य पूर्व से ही होता है। युद्ध होगा तो पेट्रोल 150 रुपये लीटर हो जाएगा – और फिर? आपके घर का बजट ही बिगड़ जाएगा। साथ ही, अमेरिका, रूस और चीन के बीच संतुलन बनाना भी हमारे विदेश मंत्रालय के लिए सिरदर्द बन चुका है।

आखिरी बात

इस पूरे मामले में एक ही बात साफ है – दुनिया की ताकतों का खेल बदल रहा है। चीन दुविधा में, रूस मौका पाकर, भारत संतुलन बनाता हुआ। अगले कुछ महीने बताएंगे कि कौन इस जंग में जीतता है। आपको क्या लगता है? नीचे कमेंट में बताइए – चलो, थोड़ी बहस तो हो!

लोग अक्सर पूछते हैं (FAQs)

  1. चीन ईरान का साथ क्यों दे रहा है?
    सीधा जवाब: तेल चाहिए! लंबा जवाब: ईरान के साथ उनके अरबों डॉलर के डील हैं, और अमेरिका को चिढ़ाना भी है।
  2. क्या रूस-चीन की जोड़ी भारत के लिए खतरा है?
    अभी तो नहीं, पर अगर पुतिन ज्यादा ही चीन के साथ हो लिए तो… फिर मुश्किल हो सकती है।
  3. पेट्रोल महंगा होगा क्या?
    भाई, अगर युद्ध हुआ तो 100 रुपये तो बेसिक प्राइस होगा। टैक्स ऊपर से लगेगा!
  4. भारत को किसका साथ देना चाहिए?
    ये कोई IPL नहीं कि टीम चुन लो। भारत को तो बस अपना फायदा देखना चाहिए – न अमेरिका का झंडा, न चीन का।

लेखक के विचार हैं। कोई भी देश यहाँ ‘अच्छा’ या ‘बुरा’ नहीं बताया गया – राजनीति है, सब अपना-अपना खेल खेल रहे हैं।

Source: Navbharat Times – Default

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