अमेरिका-ईरान वार्ता: फिर से शुरुआत, पर सवाल भी
मामला ये है कि डोनाल्ड ट्रंप ने अचानक ही ऐलान कर दिया कि अमेरिका और ईरान अगले हफ्ते बातचीत करने वाले हैं। सीधी बातचीत। पर यहाँ एक पेंच है – ट्रंप साफ-साफ कह रहे हैं कि उन्हें इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं है। तो फिर ये वार्ता क्यों? मध्य पूर्व का ये पूरा घमासान देखिए न – इजराइल और ईरान लगातार एक-दूसरे पर हमले कर रहे हैं, और बीच में अमेरिका ये नाटक कर रहा है कि वो बातचीत करना चाहता है। असली मकसद क्या है? शायद दुनिया को दिखाना कि “देखो, हम तो शांति चाहते हैं।”
ट्रंप का ऐलान: क्या है नया?
बातचीत तो होगी, पर…
ट्रंप ने कहा, “हम बात करेंगे,” फिर ठहरकर जोड़ा, “लेकिन मैं जल्दी में नहीं हूँ।” ये वाक्य समझने लायक है। एक तरफ तो वार्ता की पेशकश, दूसरी तरफ उत्साह की कमी। ऐसा लगता है जैसे कोई बच्चा मन से नहीं, मजबूरी में होमवर्क कर रहा हो। और सच कहूँ तो, ईरान के साथ बातचीत का ये कोई पहला मौका नहीं है – 2015 का परमाणु समझौता याद है न? वो भी तो ऐसे ही शुरू हुआ था।
पीछे का इतिहास
असल में ये पूरा मामला परमाणु हथियारों को लेकर है। ईरान कहता है कि उसे बिजली बनानी है, अमेरिका कहता है कि तुम हथियार बना रहे हो। सालों से यही झगड़ा चल रहा है। 2015 में एक समझौता हुआ था, पर ट्रंप ने उसे तोड़ दिया। अब फिर से वहीं वार्ता? थोड़ा अजीब लगता है, है न?
इजराइल का रोल: गेम चेंजर
हालिया झड़पों का असर
पिछले कुछ हफ्तों में इजराइल और ईरान के बीच जो हुआ, वो तो आपने देखा ही होगा। ड्रोन हमले, मिसाइलें… पूरा माहौल गरम हो गया था। और जब ये हो रहा था, तब अमेरिका-ईरान वार्ता ठंडे बस्ते में चली गई। अब अचानक ये नया डेवलपमेंट। क्या इजराइल के दबाव में अमेरिका को रणनीति बदलनी पड़ी? मेरे ख्याल से हाँ।
अमेरिका की चाल
ट्रंप प्रशासन हमेशा से ईरान के खिलाफ सख्त रहा है – प्रतिबंध लगाए, धमकियाँ दीं। पर अब ये वार्ता का रास्ता? शायद उन्हें लगा कि सिर्फ दबाव से काम नहीं चलेगा। पर एक बात तय है – ईरान को अगर परमाणु कार्यक्रम रोकना है, तभी कुछ होगा। वरना ये सब दिखावा ही रहेगा।
ईरान की तरफ से क्या आया जवाब?
ख़ामेनेई की चुप्पी
दिलचस्प बात ये है कि ईरान के सुप्रीम लीडर ख़ामेनेई ने अभी तक कुछ नहीं कहा। पर उनके विदेश मंत्रालय वाले बोल चुके हैं – “हम बातचीत के लिए तैयार हैं।” पर शर्तें वही हैं: अमेरिका प्रतिबंध हटाए और पुराने समझौते को माने। सीधी सी बात है – ईरान अपनी शर्तों पर डटा हुआ है।
परमाणु मुद्दा: दोनों तरफ अड़चन
यहीं पर सबसे बड़ी दिक्कत है। अमेरिका चाहता है कि ईरान पूरी तरह रुके, ईरान कहता है कि ये उसका हक है। बीच का रास्ता? शायद निगरानी में सीमित कार्यक्रम। पर क्या कोई इस पर राजी होगा? मुश्किल लगता है।
आगे क्या होगा? कुछ अनुमान
समझौते की संभावना: 50-50
मेरा व्यक्तिगत विचार? ये वार्ता तो होगी, पर नतीजा मिलेगा या नहीं, ये कहना मुश्किल है। दोनों तरफ इतना अविश्वास है कि – आप जानते हैं न, जैसे दो पड़ोसी जो सालों से लड़ रहे हों। और फिर इजराइल तो बीच में है ही, जो किसी समझौते को पसंद नहीं करेगा।
दुनिया की नजर इस पर
सिर्फ अमेरिका और ईरान ही नहीं, पूरी दुनिया इसे देख रही है। यूरोप वाले चाहते हैं कि शांति हो, रूस और चीन अपने-अपने हित देख रहे हैं। अगर कुछ हुआ तो पूरे मध्य पूर्व पर असर पड़ेगा। पर बड़ा “अगर” है ये।
आखिरी बात
सच तो ये है कि अभी कुछ भी तय नहीं है। ट्रंप ने वार्ता का ऐलान कर दिया, पर उनका रवैया उत्साहजनक नहीं है। ईरान अपनी शर्तों पर अड़ा है। बीच में इजराइल का दबाव। पर एक उम्मीद तो है – कूटनीति से ही समाधान निकलेगा, बमों से नहीं। बस, देखना ये है कि ये वार्ता किस दिशा में जाती है। या फिर, कहीं ये सिर्फ दिखावा तो नहीं?
Source: Navbharat Times – Default