कांग्रेस में शशि थरूर-खरगे की टकराहट: असल में क्या चल रहा है?
मानो या न मानो, कांग्रेस में फिर से वही पुरानी कहानी दोहराई जा रही है। अभी कुछ दिन पहले ही मल्लिकार्जुन खरगे का एक बयान सुर्खियों में आया—और बस, पार्टी में फिर से वही तनाव वाली हवा चलने लगी। असल में, ये कोई नई बात तो है नहीं। लेकिन इस बार शशि थरूर जैसे बड़े नाम शामिल हैं, तो मामला थोड़ा गंभीर लगता है।
बात कहाँ से शुरू हुई?
खरगे का वो बयान जिसने आग लगा दी
देखिए, खरगे ने सीधे तौर पर थरूर का नाम तो नहीं लिया, पर इशारा किसी और को थोड़े ही किया था! उन्होंने कहा, “कुछ लोग तो मोदी जी की तारीफों में ही लगे रहते हैं।” और सच कहूँ तो, ये बयान ऐसे वक्त आया जब थरूर ने हाल ही में मोदी की विदेश नीति की तारीफ की थी। तो समझदार लोगों के लिए किसकी बात हो रही है, ये तो साफ था।
थरूर का जवाब—और क्या जवाब था वो!
अब थरूर जैसे व्यक्ति चुप कहाँ बैठने वाले थे? उन्होंने ट्विटर पर ऐसा जवाब दिया कि लगा जैसे बात और बढ़ जाएगी। उन्होंने लिखा, “मैंने तो बस देश के हित की बात की थी। क्या अब सच बोलना भी गुनाह हो गया है?” साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि “अगर कोई अच्छा काम कर रहा है, तो उसे स्वीकार करने में हर्ज ही क्या है?” बात तो सही है, लेकिन राजनीति में सच बोलना हमेशा आसान नहीं होता।
कांग्रेस का वो पुराना रोग
पार्टी में टकराव की कहानी नई नहीं
याद कीजिए पिछले कुछ साल—कांग्रेस में युवा और वरिष्ठ नेताओं के बीच टकराव की खबरें आती ही रहती हैं। राहुल गांधी और पुराने नेताओं के बीच तनाव की बातें तो अक्सर सुनने को मिल जाती हैं। मतलब साफ है—पार्टी के भीतर एक तरह का ‘जनरेशन गैप’ चल रहा है, और ये नया विवाद उसी की एक और कड़ी है।
थरूर की अलग पहचान
असल में थरूर हमेशा से ही कांग्रेस में थोड़े ‘अलग’ रहे हैं। उनकी सोच, उनका अंदाज—ये सब पार्टी के पारंपरिक तरीकों से मेल नहीं खाता। पिछले साल अध्यक्ष पद के चुनाव में खरगे से हारने के बाद से तो उनकी भूमिका पर सवाल और बढ़ गए हैं। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि थरूर को पार्टी में ‘अछूत’ जैसा व्यवहार मिलता है।
अब आगे क्या?
2024 के चुनावों पर असर?
ये सब ऐसे वक्त हो रहा है जब कांग्रेस 2024 की तैयारी में जुटी है। अगर ये तनाव बढ़ता है, तो पार्टी की एकजुटता पर सवाल उठ सकते हैं। और चुनावों में तो एकजुटता सबसे ज़रूरी चीज़ होती है—ये तो आप भी जानते हैं।
भाजपा तो मौका लूटने में जुट गई
दूसरी तरफ भाजपा वाले तो इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते। अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं ने तो ट्वीट करके हमला ही कर दिया। उनका कहना है कि “कांग्रेस में अब लोकतंत्र ही खत्म हो गया है।” सोशल मीडिया पर भी ये मुद्दा गर्म हो चुका है।
क्या ये सच में बड़ा मुद्दा है?
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
कुछ लोग इसे छोटी सी बात बता रहे हैं, पर कुछ का मानना है कि ये कांग्रेस के भीतर की गहरी दरार को दिखाता है। जैसे प्रो. संदीप शास्त्री कहते हैं, “ये तो बस शुरुआत है। असली समस्या तो पार्टी में नेतृत्व के संकट की है।”
क्या सोनिया गांधी हस्तक्षेप करेंगी?
सूत्रों की मानें तो सोनिया गांधी ने दोनों नेताओं को शांत रहने को कहा है। पर सवाल ये है कि क्या ये काफी होगा? थरूर जैसे नेता आसानी से पीछे हटने वाले तो हैं नहीं।
आखिर में…
सच तो ये है कि ये विवाद कांग्रेस के उस पुराने घाव को फिर से हरा कर रहा है जो कभी भरा ही नहीं। 2024 की लड़ाई से पहले पार्टी के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती होगी—खुद को एकजुट रखना। आपको क्या लगता है? थरूर ने सही किया मोदी की तारीफ करके? या खरगे का रुख जायज़ था? नीचे कमेंट में बताइए।
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Source: Navbharat Times – Default