ट्रंप ने भारत-पाक झगड़े का श्रेय खुद ले लिया – पर क्या सच में उनका कोई रोल था?
ये कहानी तो आपने सुनी ही होगी – फरवरी 2021 में भारत और पाकिस्तान के बीच जो युद्धविराम हुआ, उसका श्रेय अब डोनाल्ड ट्रंप ले रहे हैं। अरे भई, सच क्या है? नाटो मीटिंग में ट्रंप ने दावा किया कि उनके एक फोन कॉल ने मामला सुलझाया। लेकिन भारत सरकार का जवाब? बिल्कुल साफ – “ये हम दोनों देशों की बातचीत का नतीजा था, अमेरिका का इसमें कोई हाथ नहीं।”
“मैंने रोका युद्ध” – ट्रंप का बयान और उसकी असलियत
क्या बोले ट्रंप?
बात यूं है कि ट्रंप ने कहा, “मैंने ही मोदी को फोन करके समझाया था।” सुनकर लगता है जैसे कोई सुपरहीरो अपनी कहानी सुना रहा हो। पर यहां एक सवाल – अगर ट्रंप इतने ही असरदार थे, तो 2019 में कश्मीर मुद्दे पर उनकी मध्यस्थता को भारत ने क्यों ठुकरा दिया था? याद कीजिए, तब विदेश मंत्रालय ने साफ कहा था – “कश्मीर हमारा अंदरूनी मामला है।”
पुरानी आदत नहीं छूटी
देखिए न, ये ट्रंप का पुराना तरीका है। 2019 में भी ऐसा ही कुछ हुआ था। अमेरिकी चुनावों के पहले-पहले अचानक अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी भूमिका बढ़ा-चढ़ाकर बताना… संयोग? शायद नहीं।
भारत का जवाब: “धन्यवाद, पर जरूरत नहीं”
दिल्ली की साफगोई
एक सीनियर ऑफिसर (जिनका नाम तो मैं नहीं ले सकता) ने बताया – “सब हमारी बातचीत से हुआ।” सीधा मतलब – अमेरिका को थैंक्यू, पर हम खुद ही डील कर लेते हैं। और सच कहूं तो ये भारत की पुरानी पॉलिसी रही है – पाकिस्तान से सीधी बातचीत।
क्या हुआ असल में?
पता चला है कि ये समझौता दोनों देशों के मिलिट्री अधिकारियों के बीच हुई कुछ गुप्त मीटिंग्स का नतीजा था। रहस्यमय तरीके से, पर सीधे। जैसे पड़ोसी आपस में झगड़ा सुलझाते हैं – बिना बिचौलियों के।
दुनिया क्या कह रही है?
अमेरिकी मीडिया को भी शक
वाशिंगटन पोस्ट जैसे अखबारों ने तो ट्रंप के दावे पर सवाल ही उठा दिए। एक्सपर्ट्स कह रहे हैं – ये सब 2020 के चुनावों से पहले अपनी इमेज चमकाने की कोशिश है। सच कहूं तो ट्रंप अक्सर ऐसे दावे करते रहे हैं।
पाकिस्तान की चुप्पी
सबसे मजेदार? पाकिस्तान की प्रतिक्रिया। कोई ऑफिशियल बयान नहीं। कुछ मीडिया हाउसेस ने ट्रंप की तारीफ की, तो कुछ ने कहा – “ये तो बिल्कुल क्लियर नहीं है।” शायद वो भी समझ गए कि इसमें कुछ रखा नहीं है।
आज कहां खड़े हैं भारत-पाक रिश्ते?
सीमा पर शांति, पर दिलों में दूरी
एक अच्छी बात – सीमा पर अब गोलीबारी नहीं हो रही। पर ये भी सच है कि दोनों देश एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते। कश्मीर का मसला तो जस का तस है। कभी भी फिर से तनाव बढ़ सकता है – ये तो हम सब जानते हैं।
आगे क्या?
एक्सपर्ट्स की राय – बातचीत तो होगी, पर धीरे-धीरे। अंतरराष्ट्रीय समुदाय? उनकी भूमिका हमेशा की तरह लिमिटेड ही रहेगी। वजह साफ है – भारत को बाहरी दखल पसंद नहीं। और हमने ये बार-बार साबित भी किया है।
तो क्या सीखा हमने?
इस पूरे प्रकरण ने दो बातें फिर से साबित कर दी हैं:
- ट्रंप को अपनी उपलब्धियां बढ़ा-चढ़ाकर बताने की आदत से मुक्ति नहीं मिली
- भारत अपने मामलों में किसी की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा – चाहे वो अमेरिका ही क्यों न हो
अब देखना ये है कि आने वाले दिनों में ये रिश्ते किस राह पर चलते हैं। एक बात तो तय है – ये कहानी अभी खत्म नहीं हुई।
PS: क्या आपको नहीं लगता कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति कभी-कभी सास-बहू के झगड़ों जैसी लगती है? सब अपनी-अपनी बढ़ाते हैं!
Source: Navbharat Times – Default